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रात हुई, सो गए / केदारनाथ अग्रवाल

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परात में पड़ा
पानी
आकाश का सूरज लिए
गरम भाप बना
और हम
पेट में पानी पिए
आँख-आँख में सूरज लिए
जिस्म
और जवानी से
दम-दम दहके,
कुरसी पर बैठे
झुके हुए,
सूरज के डूबे पर
बुझ गए।

हमने कुछ किया नहीं
हमने कुछ जिया नहीं
रात हुई
सो गए
द्वन्द्व और दुनिया से
खो गए।

रचनाकाल: २९-०१-१९७५