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अभयारण्य / इंदुशेखर तत्पुरुष
Kavita Kosh से
वह सघन हरा वृक्ष
पत्तियां कड़वी जहर
गंध ऐसी कि उबकाई आ जाए
पेड़ फिर भी पेड़ होता है।
अभेद्य दुर्ग की तरह सुरक्षित
लाखों दृश्यादृश्य जीवों का जीवनहार
कड़वा नहीं होता तो बचता क्या
रसलोलुप निगाहों के आखेट से!
बनता क्या कीट-पतंगों का यह
नैसर्गिक अभयारण्य!!