आरत है भारत पुकारत है दीनानाथ।
लूटें लियैं जात यहाँ बाकी बची धूर है॥
खाने को न अन्न तन छांदन कौ वस्त्र नांहि।
भारी दुःख पावें ह्यॉ किसान मजदूर हैं॥
रक्षक जे भक्षक बने हैं सब आपहि आप।
लीने है बनाय कैं गुलाम जी हजूर है॥
काढ़ लीजे चीमटी अजादी दै धसे हैं घने।
भारतीय जीवन में सूर के से सूर हैं॥