इस शहर में भी / योगेंद्र कृष्णा
रफ्तार में बदलते
इस शहर में भी
कुछ ऐसे मकान के निशान
अभी बाकी हैं
जिनके आंगन की मुंडेर
आदमी के कद से बहुत छोटी है
मुंडेर से कव्वे बोलते हैं
अमरबेल की लताएं
बड़ी होकर उसपर खेलती हैं
इस शहर में भी
आंगन वाले कुछ ऐसे मकान
अभी बचे हैं
जहां कमरों की जगह
चार कोने हैं
दीवारें और छतें नहीं हैं
पर खिड़कियां, दरवाजे
और आसमान अपनी जगह हैं
पक्षियों के घोंसलों में
सुरक्षित रातें और सहर हैं
सड़कें नहीं हैं
पर रास्ते अपनी जगह हैं
हमारे पुरखों की मूरतें भी नहीं हैं
पर उन तक पहुंचने की
सूरतें हमसफर हैं
तेजी से बदलते
इस शहर में भी
ऐसी जगहें अभी बची हैं
जहां बाजार की जगमग नहीं हैं
और घर को चिढ़ातीं
इमारतें नहीं हैं
बस मामूली सी एक हाट है
घर के आंगन में समा जाए
पूरी एक दुनिया
छोटी सी ऐसी
मामूली एक खाट है