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उजाला हूँ / देवेन्द्र आर्य
Kavita Kosh से
यकीनन डूब के मैं फिर उगूँगा
उजाला हूँ, उजाला ही रहूँगा ।
मेरे भी द्रोण ने मुझसे कहा था
अँगूठा दोगे तब वरदान दूँगा ।
यही बेहतर है मुझको गूँगा कर दे
नहीं तो सच को मैं सच ही कहूँगा ।
बयानों में भले हो कोई लेकिन
तेरी खामोशियों में, मैं रहूँगा ।
सयानों की हँसी हँसता रहा मैं
मैं बच्चों की तरह से कब हँसूँगा ।
तेरी फ़ेहरिस्त का हिस्सा नहीं हूँ
समय हूँ, कटते-कटते ही कटूँगा ।