Last modified on 24 जून 2009, at 19:07

एक यात्रा के दौरान / चार / कुंवर नारायण

घटनाचक्र की तरह घूमते पहिये :

वह भी एक नाटकीय प्रवेश होता है

चलती ट्रेन पकड़ने वक़्त, जब एक पाँव


छूटती ट्रेन पर और दूसरा

छूटते प्लेटफ़ार्म पर होता है

सरकते साँप-सी एक गति

दो क़दमों के बीच की फिसलती जगह में,

जब मौत को एक ही झटके में लाँघ कर

हम डब्बे में निरापद हो जाना चाहते हैं :


वह एक नया शुभारम्भ होता है किसी यात्रा का

भागती ट्रेन में दोनो पांव जब

एक ही समय में एक ही जगह होते हैं,

जब कोई ख़तरा नहीं नज़र आता

दो गतियों के बीच एक तीसरी संभावना का ।

भविष्य के प्रति आश्वस्त

एक बार फिर जब हम

दुश्चिन्तामुक्त समय में - स्थिर चित्त -

केवल जेब में रख्खे टिकट को सोचते हैं,

उसके या अपने कहीं गिर जाने को नहीं ।