कजली / 51 / प्रेमघन
गवनहारिनों की लय
ब्रजभाषा भूषित
कुंज गलीन भुलाय गई गुय्याँ रे॥
कौन बतैहै गैल आय अब;
यह जिय सोच समाय गई गुय्याँ रे॥
इतने मैं इक छैल छली की;
लखि छबि छकित लुभाय गई गुय्याँ रे॥
नेरे आय, सैन सार मार्यो;
मैं जेहि घाय अघाय गई गुय्याँ रे॥
व्याकुल जानि, मोहिं गर लायो;
हौं सकुचाय लजाय गई गुय्याँ रे॥
पिया प्रेमघन, मग बतरायो;
मैं तेहि हाथ बिकाय गई गुय्याँ रे॥93॥
॥दूसरी॥
स्थानिक स्त्री भाषा
कजली खेलने वालियों की रुचि का चित्र
सारी रँगाय दे; गुलेनार मोरे बालम॥
चोली चादरि एक्कै रंग कै, पहिरब करिकै सिंगार मोरे बालम॥
मुख भरि पान नैन दै काजर, सिर सिन्दूर सुधार मोरे बालम॥
मेंहदी कर पग रंग रचाई कै, गर मोतियन कर हार मोरे बालम॥
गोरी गोरी बहियन हरी-हरी चुरियाँ, पहिरन जाबै बजार मोरे बालम॥
अँठिलातै चलबै पौजेबन की करिकै झनकार मोरे बालम॥
बीर बहूटी-सी बनि निकरब, बनउब लाखन यार मोरे बालम॥
झेलुआ झूलब कजरी खेलब, गाउब कजरी मलार मोरे बालम॥
सावन कजरी की बहार में, तोहसे करौबे करार मोरे बालम॥
देखवैय्यन में खार बढ़ाउब जेहमें जलइ तरबार मोरे बालम॥
आधी राति तोहरे संग सुतबै, मुख चूमब करि यार मोरे बालम॥
बारे जोबन कै इहइ मजा है, जिनि किछु करह बिचार मोरे बालम॥
रसिक प्रेमघन पैय्याँ लागौं, मानः कहनवां हमार मोरे बालम॥94॥