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कजली / 53 / प्रेमघन
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झूले की कजली
बृजभाषा भूषित
झूलन की उझकनि झुकि झूलनि॥
कलित निकुंज कदम्ब कलापी
कुल कूकनि कालिन्दी कूलनि॥
ललित लतन लपटनि तरु उपबन
फबे फैलि फूले फल फूलनि॥
गावनि गरबीली गजगामिनि
गन गोपाल हरखि हँसि हूलनि॥
लहँगन की लहरानि पितम्बर,
की फहरानि हरनि हिय सूलनि॥
झुमकन की झूलनि जैसी,
त्यों झुलनी की झूलनि सुख मूलनि॥
उरझनि बन माली बन माला,
बाल माल माती सँग चूलनि॥
प्रेम प्रलाप करत देउ मोहे,
कहि कहिनिज बतियन की भूलनि॥
बरसत रस मिलि जुगल प्रेमघन,
लगि हिय लहि आनन्द अतूलनि॥98॥