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कजली / 72 / प्रेमघन
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प्रधान प्रकार के चतुर्थ विभेद में
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कबहूँ तौ इत आवो, तनी बाँसुरी बजाओ,
मन मेरो बहलाओ; भूलै नाहीं तोरी साँवरी मुरतिया ना।
नैना तोरे रतनारे, अन्हियारे कजरारे,
नयन मद मतवारे, करैं जुवतिन के हिय घतिया ना।
खुली गालन पैं प्यारी, लट लहरैं तिहारी,
कारी कारी घूँघरवारी, डसैं मन मानो नागिनि की भँतिया ना।
मुख लखि चन्द लाजै, सीस मुकुट विराजै,
अंग अंग छबि छाजै; प्यारी-प्यारी प्रेमघन तोरी बतिया ना॥123॥