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कत्ते निठुर बुढ़िया मलकिनियाँ / जयराम दरवेशपुरी

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फूट-फूट के कानइत जा हइ
लय की कमिनियाँ अगे माय!
कत्ते निठुर! बुढ़िया मलकिनियाँ

संझिये के लावे गेलूं
डेउढ़ी से मजुरिया
रोटिया पकावऽ हलथिन
पड़लइ नजरिया
आठो बज्जड़ कइलन हमर
नन्हका बुतरूआ
लाल लाल अँखिया
कसलथिन किसइनियाँ

फुटले बटखरवा
उदासे नित तउलऽ हथ
मांगू तऽ डाँट-डपट बोलऽ हथ
बिझले खेंसड़िया पर
कत्ते मूड़ी धुनऽ हथ
अपना के बूझऽ हथिन
कतबड़ महरनियाँ
भादो के गर्मी में
देहिया जरइलूं हम
निहुरल कदवा में
गोड़ हाथ सड़इलूं हम
लहरिया दरदिया में
जिनगी जरइलूं हम
बड़ मलोल आवे
कथी ले कमइलूं
हम दुन्हूं परनियाँ

दुनूं मिलि छिललूं
जंगल खरहनियाँ
सइयाँ ढोवे
एक सरे गोबरा अउ पनियाँ
पड़ोर-पड़ोर
निपलूं दू पहरे खरहनियाँ
मांगलूं मजूरी कहलन
सनिच्चर अउ कमिनियाँ