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कवि हूँ / विमलेश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
एक ऐसे समय में
जब शब्दों ने भी पहनने शुरू कर दिये हैं
तरह तरह के मुखौटे
शब्दों की बाजीगरी से
पहुँच रहे हैं लोग सड़क से संसद तक
एक ऐसे समय में
जब शब्द कर रहे हैं
नायकत्व के सम्मोहक अभिनय
हो रही है उनकी ताजपोशी
शीत ताप नियंत्रित कक्षों में
एक ऐसे समय में
जब शब्दों को सजाकर
नीलाम किया जा रहा है रंगीन गलियों में
और कि नंगे हो रहे हैं शब्द
कि हाँफ रहे हैं शब्द
एक ऐसे समय में
शब्दों को बचाने की लड़ रहा हूँ लड़ाई
यह शर्म की बात है
कि मैं लिखता हूँ कविताएँ
यह गर्व की बात है
कि ऐसे खतरनाक समय में
कवि हूँ... कवि हूँ...