कहीं भी हमारा गुजारा नहीं।
मिले ईश का जब सहारा नहीं।
वही हैं चलाते सकल सृष्टि को,
यहाँ एक भी है हमारा नहीं।
उन्हीं के भरोसे रहूँ सर्वदा,
मिला भाग्य का वह सितारा नहीं।
नदी मध्य है आज नैया फँसी,
कहीं दीखता है किनारा नहीं।
चरण में पड़ा देख ‘बाबा’ दुखी,
प्रभो क्यों दिखाते इशारा नहीं?