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खुद से रूठे हैं हम लोग / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
खुद से रूठे हैं हम लोग
टूटे-फूटे हैं हम लोग
सत्य चुराता आँखे हमसे
इतने झूठे हैं हम लोग
इसे साध ले, उसे बाँध ले
सचमुच खूँटे हैं हम लोग
क्या कर लेंगी वे तलवारें
जिनकी मूँठे हैं हम लोग
मय-ख्वारों की महफ़िल में
ख़ाली घूँटे हैं हम लोग
हमें अजायबघर में रख दो
बहुत अनूठे हैं हम लोग
हस्ताक्षर तो बन न सकेंगे
सिर्फ अंगूठे हैं हम लोग