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खोई दुनिया का सुराग़ / योगेंद्र कृष्णा
Kavita Kosh से
सामने खड़े
उस लड़के के लिए
तुम
दीवार पर टंगी
सिर्फ एक तस्वीर नहीं हो
रफ्तार में
छूटते पड़ावों का
एक अनंत विस्तार हो तुम
तुम्हारे पुरखों पर
सदियों से हुए जुल्म की
तमाम अनगढ़ कहानियां
तुम्हारे अधखुले
स्याह होठों की चुप्पियों पर
आज भी तारी हैं
जो
शब्दों से गढ़ी
तमाम भाषाओं को
खाली कर जाती हैं
तभी तो
बैसाखी के सहारे
तुम्हारे सामने खड़ा
वह लड़का
आईने में तब्दील
तुम्हारे सपाट चेहरे में
दुनिया का कोई
आश्चर्य नहीं देखता
अपनी खोई दुनिया का
सुराग़ ढूंढ़ता है