(तर्ज आरती-ताल कहरवा)
गायत्री माता, जय गायत्री माता।
वेदजननि, वेदात्मा, विद्या विख्याता॥
रक्तवर्ण शुभ प्रातः ब्रह्मात्त रूपधरा।
हंसारूञ्ढ़ा भुज-मुख-चार चारु अपरा॥
मध्याह्ने हरि-रूपा नीलवर्ण शुभदा।
गरुड़वाहिनी चतुरा चतुर्बाहु सुखदा॥
सार्था बृषभारूञ्ढ़ा शिवरूपा श्वेता।
सूर्यकोटिसम आभा चतुर्भुजोपेता॥
पञ्चमुखा दशहस्ता शुचि रस-रस-नयना।
स्फटिक समुज्ज्वलवर्णा कल करुणा-अयना॥
अघहारिणि, भवतारिणि-सुखकारिणि परमा।
ब्रह्मात्तणी, रुद्राणी, शुभलक्षणा रमा॥
दुरित दुःख-दुर्गति सब दुर्मति दूर करो।
शुचितम मम उरमें मा विमला भक्ति भरो॥