Last modified on 29 अक्टूबर 2016, at 22:39

गायत्री माता, जय गायत्री माता / हनुमानप्रसाद पोद्दार

(तर्ज आरती-ताल कहरवा)

गायत्री माता, जय गायत्री माता।
 वेदजननि, वेदात्मा, विद्या विख्याता॥
 रक्तवर्ण शुभ प्रातः ब्रह्मात्त रूपधरा।
 हंसारूञ्ढ़ा भुज-मुख-चार चारु अपरा॥
 मध्याह्ने हरि-रूपा नीलवर्ण शुभदा।
 गरुड़वाहिनी चतुरा चतुर्बाहु सुखदा॥
 सार्था बृषभारूञ्ढ़ा शिवरूपा श्वेता।
 सूर्यकोटिसम आभा चतुर्भुजोपेता॥
 पञ्चमुखा दशहस्ता शुचि रस-रस-नयना।
 स्फटिक समुज्ज्वलवर्णा कल करुणा-‌अयना॥
 अघहारिणि, भवतारिणि-सुखकारिणि परमा।
 ब्रह्मात्तणी, रुद्राणी, शुभलक्षणा रमा॥
 दुरित दुःख-दुर्गति सब दुर्मति दूर करो।
 शुचितम मम उरमें मा विमला भक्ति भरो॥