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गीतावली उत्तरकाण्ड पद 21 से 30 तक/ पृष्ठ 9
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चरचा चरनिसों चरची जानमनि रघुराइ |
दूत-मुख सुनि लोक-धुनि घर घरनि बूझी आइ ||
प्रिया निज अभिलाष रुचि कहि कहति सिय सकुचाइ |
तीय-तनयसमेत तापस पूजिहौं बन जाइ ||
जानि करुनासिन्धु भाबी-बिबस सकल सहाइ |
धीर धरि रघुबीर भोरहि लिए लषन बोलाइ ||
"तात तुरतहि साजि स्यन्दन सीय लेहु चढ़ाइ |
बालमीकि मुनीस आस्रम आइयहु पहुँचाइ||
"भलेहि नाथ, सुहाथ माथे राखि राम-रजाइ |
चले तुलसी पालि सेवक-धरम अवधि अघाइ ||