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गीतावली उत्तरकाण्ड पद 21 से 30 तक/ पृष्ठ 8

(26)
राम बिचारि कै राखी ठीक दै मन माहिं |
लोक-बेद-सनेह पालत पल कृपालहि जाहिं ||

प्रियतमा, पति देवता, जिहि उमा रमा सिहाहिं |
गुरुविनी सुकुमारि सिय तियमनि समुझि सकुचाहिं ||

मेरे ही सुख सुखी, सुख अपनो सपनहूँ नाहिं |
गेहिनी-गुन-गेहिनी गुन सुमिरि सोच समाहिं ||

राम-सीय-सनेह बरनत अगम सुकबि सकाहिं |
रामसीय-रहस्य तुलसी कहत राम-कृपाहिं ||