गीत हम रोज़ गुनगुनाते हैं।
दर्द दिल के सभी छुपाते हैं।
बेवफ़ा को भुला नहीं पाते,
वो हमें खूब याद आते हैं।
एक भी बात अब नहीं होती,
फर्ज़ हम ही सदा निभाते हैं।
दोस्ती तो हमें हुआ करती,
भीड़ में दोस्त छूट जाते हैं।
तालियाँ ख़ूब तब बजे ‘बाबा’
मंच पर आप गीत गाते हैं।