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गुस्सा तुम्हारा / शलभ श्रीराम सिंह

मेरा तो कुछ भी नहीं रह गया था मेरे पास
फिर से सब कुछ दिया हुआ है तुम्हारा
गुस्सा और प्यार और जीने की ललक...

गुस्सा तुम्हारा तुम पर ही उतरा
तुम पर ही बरसा तुम्हारा अपना प्यार
जीने की ललक के साथ

बार-बार तुम्हारी ओर लपका जीवन
तुम्हारे अलावा किसको थी मेरी फ़िक्र?
चिंता किसको थी तुम्हारे अलावा मेरी?

किस पर उतरता गुस्सा तुम्हारे अलावा?
तुम पर ही उतरा गुस्सा तुम्हारा
बरसा तुम पर ही तुम्हारा अपना प्यार।।


रचनाकाल : 1992 मसोढ़ा