जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा-भक्तनुग्रह-कातर ईश।
बने दारुमय रूप अनोखे देते नित मंगल आशीष॥
सागर-तटपर पुरी-धाममें रहे दयामय नित्य विराज।
करते सबका सहज परम हित, सजे विलक्षण मंगल-साज॥
जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा-भक्तनुग्रह-कातर ईश।
बने दारुमय रूप अनोखे देते नित मंगल आशीष॥
सागर-तटपर पुरी-धाममें रहे दयामय नित्य विराज।
करते सबका सहज परम हित, सजे विलक्षण मंगल-साज॥