भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो बोलूँगा, सच बोलूँगा / फूलचन्द गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो बोलूँगा, सच बोलूँगा
सच को खुरच-खुरच बोलूँगा

आएगी जब खूँ की नौबत
दिल को उलच-उलच बोलूँगा

झूठ, फ़रेब, दम्भ, लालच के
चक्रव्यूह से बच बोलूँगा

नई व्यवस्था होंगी उसमे
नई संहिता रच बोलूँगा

अमृत मिल जाए तुझको, विष
मुझको जाए पच बोलूँगा