Last modified on 4 मई 2025, at 23:50

झूठ है सब / अमर पंकज

झूठ है सब,
ये कहा कब?।

होश आया,
लुट गया जब।

दूर थे जो,
पास हैं अब।

मेरा तो है,
इश्क़ मज़हब।

रह के चुप तू,
देख करतब।

बँट रही है,
मुफ़्त मनसब।

हँस रहे हो,
बंद कर लब।

हर किसी को,
देखता रब।

राज जब था,
फ़िक्र थी तब।

अब ‘अमर’ क्या,
चुप का मतलब।