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डायन / शरद कोकास

वे उसे डायन करते थे
गाँव में आन पड़ी तमाम विपदाओं के लिए
मानो वही ज़िम्मेदार थी

उनका आरोप था
उसकी निगाहें बुरी हैं
उसके देखने से बच्चे बीमार हो जाते हैं
स्त्रियों व पशुओं के गर्भ गिर जाते हैं
बाढ़ के अंदेशे हैं उसकी नज़रों में
उसके सोचने से अकाल आते हैं

उसकी कहानी थी
एक रात तीसरे पहर
नदी का जल लेने गई थी वह
ऐसी ख़बर थी कि उस वक़्त
उसके तन पर एक भी कपड़ा न था
सर सर फैली यह ख़बर
कानाफूसियों में बढ़ती गई
एक दिन
डायरिया से हुई किसी बच्चे की मौत पर
वह डायन घोषित कर दी गई

किसी ने कोशिश नहीं की जानने की
उस रात नदी पर क्यों गई थी वह
दरअसल अपने नपुंसक पति पर
नदी का जल छिड़ककर
खुद पर लगा बांझ का कलंक
मिटाने के लिए
यह तरीका उसने अपनाया था
रास्ता किसी चालाक मांत्रिक ने सुझाया था
एक पुरुष के पुरुषत्व के लिए
दूसरे पुरुष द्वारा बताया गया यह रास्ता था
जो एक स्त्री की देह से होकर गुजरता था

उस पर काले जादू का आरोप लगाया गया
उसे निर्वस्त्र कर दिन-दहाड़े
गलियों बाज़ारों में घुमाया गया
बच्चों ने जुलूस का समाँ बांधा
पुरुषों ने वर्जित दृश्य का मज़ा लिया
औरतों ने शर्म से सर झुका लिए

एक टिटहरी ने पंख फैलाए
चीखती हुई आकाश में उड़ गई
न धरती फटी
न आकाश से वस्त्रों की बारिश हुई।

-1997