भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ढाका शहर दिखादे ओ फौजी पिया / दयाचंद मायना
Kavita Kosh से
ढाका शहर दिखादे ओ फौजी पिया...टेक
हमनै पता ना इस हलचल का
हेद भेद ना तेरी रफल का
करकै फायर दिखादे...
हम सै मोती असल सीप के
बलम ड्राईवर मेरी ओ जीप के
फिरते डायर दिखादे...
सैल करादे उसी जगहां की
फौज पड़ी जित याहियां खां की
वो जंगल डहर दखिादे...
तेरी छुट्टी सै आज-आज की
‘दयाचन्द’ के साज-बाज की
हमनैभी लहर दिखादे...