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तुमसे होगा ये मिलना कभी / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
तुमसे होगा यूँ मिलना कभी
स्वप्न में भी न सोचा कभी
लाभ पर बेचने के लिए
हमने कुछ न खरीदा कभी
सोचने से तो होती नहीं
हल किसी की समस्या कभी
उनके दामन में भी दाग हैं
जिनका दामन था उजला कभी
अर्थ करना कठिन हो गया
मर्द-औरत का रिश्ता कभी
रोकने से भी रुकता नहीं
बीच पर्वत पे झरना कभी
उसको है आजतक इन्तिजार
आएगा, आने वाला कभी.