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तुम आओ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / प्रयाग शुक्ल
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तुम नव-नव रूपे एसो प्राणे !
नव रूप लिए प्राणों में
तुम आओ ।
गन्धों रंगों गानों में
तुम आओ ।।
पुलकित स्पर्शों अंगों
तुम आओ ।
हो चित्त सुधामय हर्षित
तुम आओ ।।
इन मुग्ध चकित नयनों में
तुम आओ ।
ओ ! निर्मल उज्ज्वल कान्त ।
सुन्दर स्निग्ध प्रशान्त ।।
हो अद्भुत्त एक विधान
तुम आओ ।
सुख-दुःख जीवन मर्मों में
तुम आओ ।।
सब नित्य नित्य कर्मों में
तुम आओ ।
जब कर्म सभी हों पूरे
तुम आओ ।।
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
('गीत पंचशती' में 'पूजा' के अन्तर्गत 40 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)