भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तो समझना / विमलेश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
जहाँ सबकुछ खत्म होता है
सबकुछ वहीं से शुरू होता है
तुम्हें जब भी लगे-
कि तुम्हारे हिस्से की सारी जमीन
छीन ली गयी है
तुम्हारे सपनों को
किसी महान आदमी के पुतले के साथ
जला दिया गया है
और खड़ा कर दिया गया है तुम्हें
शरणार्थी का नाम देकर
एक अजनबी दुनिया में
विज्ञापन की तरह
तो समझना ;जैसे कि मैंने समझा हैद्ध
कि तुम्हारे हिस्से की हवा में
एक निर्मल नदी बहने वाली है
तुम्हारे हृदय के मरूथल में
इतिहास बोया जाना है
और ध्मनियों में शेष
तुम्हारे लहू से
सदी की सबसे बड़ी कविता लिखी जानी है