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दिल से यदि नाम पुकारा होता / रंजना वर्मा

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दिल से यदि नाम पुकारा होता
सांवरा श्याम हमारा होता

ओस बन बून्द गगन से आती
रूप कलियों का निखारा होता

श्याम होती न नदी कालिन्दी
उसने ग़र पग न पखारा होता

देह में साँस अटक ही जाती
तुम ने आकर न उबारा होता

रूप कोई न लुभाता मन को
साँवरे को जो निहारा होता

एक मुस्कान लबों पर थिरके
अश्क़ इतना तो' न खारा होता

मेघ ऐसे न छटा दिखलाते
केश उसने जो' सँवारा होता

जाम नजरों का तुम्हारी मिलता
दिल न यूँ आज कुंवारा होता

उसके' आने की' जो' आहट सुनते
मन का' आँगन तो' बुहारा होता