नास्तिक के सम्मान में / विजेता मुद्गलपुरी
हमरा मोन में
बैठ गेलै हन
एगो नास्तिक
नास्तिक
प्रतिवाद नै करै छै
पूजा के थाल के
आरती के शंख के
मंदिर के घंटा के
रामायण के चौपाई के
तुलसी चौड़ा पर बरैत दीया के
हमरा माथा में लगल
ललका टिक्का के
नास्तिक
कुरेदै छै तर्क से
स्मरण शक्ति के
बुद्धि के
अगल-बगल के परिवेश के
आरो,
भूत, भविष्य, वर्तमान के
वैचारिक बोनसाई के खिलाप
जब खड़ा होय छै नास्तिक
रूढ़ता के दीवार
कुछ आरो बड़ा होय जाय छै
नास्तिक
लड़तें रहै छै
गाछ के आजादी के लेल
पेड़ के पौधा बनाय के रख्खै के खिलाप
सेवा बस्ती में
सेवा-रत आदमी के देख के
जब नाक सिकोरै छै पुजारी
नास्तिक हँसै छै
एक भयावह अट्ठहास करै छै
जे हँसी में
गुम होय जाय छै
मुर्ति के असतित्व
आरो,
मुर्ति के सामने के जुरल हाथ
अपने आप घूमि जाय छै
नास्तिक के सम्मान में