पहले अपने दिल को दीवाना कहूँ
फिर कहीं चाहत का अफसाना कहूँ
बारहा कहता है मुझ से मेरा दिल
मैं तेरी आँखों को मयखाना कहूँ
कब से मेरे दिल में रहता है वोह शख्स
किस ज़बां से उसको अनजाना कहूँ
मुझको सच कहने की आदत है बहुत
क़ातिलों को कैसे दीवाना कहूँ
जाने कब से ख़ुश्क हैं आँखे तेरी
किस तरह मैं इसको मयखाना कहूँ
ज़ेह्ल के जो लोग पैरोकार हैं
चाहते हैं मैं उन्हें दाना कहूँ
उस की मूरत बस गयी दिल में सिया
फिर ना क्यूं इस दिल को बुतखाना कहूँ