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प्राणेश्वरि! जबसे मैं आया हूँ / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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प्राणेश्वरि ! जबसे मैं आया हूँ मथुरा कर तेरा त्याग।
तबसे तुझे भूलकर पलभर भी न पा सका सुख निर्भाग॥
मधुर एक, बस, तेरी ही स्मृति है मेरा जीवन-आधार।
प्रतिपल वह जीवनमें जीवन भरती रहती है अनिवार॥
स्वप्न-जागरणमें जो कुछ भी करते हैं सब इन्द्रिय-मन।
सबमें बस, तेरा मीठा सबन्ध बना रहता प्रति छन॥
भोजन-शयन-सभीमें तेरी संनिधि देती परमानन्द।
तेरे बिना सदा भूला रहता मैं सहज स्वरूपानन्द॥
तू ही एकमात्र सुख मेरा, तू ही है प्राणोंकी प्राण।
हृदयेश्वरि ! तेरी विस्मृति लवभर न सहन कर सकते प्राण॥