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बजावत मुरली स्याम सुजान / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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बजावत मुरली स्याम सुजान।
बनि संगीत-रूप रसमय प्रिय छेड़त मीठी तान॥
धन्य भर्‌ईं सब राग-रागिनीं, बड़भागिनी महान।
हरि-मुख बसीं, निकसि मुरली-छिद्रन तें सुधा-समान॥
हर्‌यौ सकल बिष जग-बिषयन कौ, कर्‌यौ उदय अनुराग।
प्रियतम स्याम-चरन-पंकज में, भयौ सहज सब त्याग॥
टूटि गये सब बंधन, जागे परम सखी के भाग।
मुरली की मोहनी मिटा‌ए भोग-बिराग-बिभाग॥