भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बढ़ते चले, शूल-मद-मर्दन / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग अडाणा-ताल झूमरा)

बढ़ते चले, शूल-मद-मर्दन करते पार्थ जयद्रथ-‌ओर।
 कुञ्रु-दल-दर्प-दलन द्रुत करते समरान्गण रण दारुण घोर॥
 उतर पड़े रथसे, जब देखा अश्वोंको घायल अति श्रान्त।
 रोक लिये एकाकी सहसा सभी शूर भूपति दुर्दान्त॥
 किया प्रकट जलपूर्ण सरोवर कर पृथ्वीपर अस्त्राघात।
 रचा रुचिर परिचर्यागृह अश्वोंका बाणोंसे वि?यात॥
 करने लगे चिकित्सा-सेवा स्वयं भक्तवत्सल भगवान।
 अश्व हु‌ए अक्षत, उत्साहित, पुनः पूर्ववत‌ शक्ति-निधान॥