भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मृत्यु का जन्म / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जन्म के साथ ही
होता है जन्म भी मृत्यु का
ऐसा मानता हूँ मैं।

मेरी यह मान्यता एक ओर
गीता में परिभाषित ‘स्थित प्रज्ञ’
बनने में देती है सहायता।

होकर तटस्थ मैं
भोगता जीवन को
जीवन केहर क्षण को।

दूसरे,
जन्म के साथ ही
करने से इसका वरण
लगती है मेरे अस्तित्व पर
सही मुहर
जिससे हो जाता इस
जीवन-अस्तित्व का
अधिकृत प्रमाणीकरण।

और चाहिए ही क्या
चाहता हर-एक प्राणी यह कि
उसके अस्तित्व को
उसके व्यक्तित्व को
जानें-पहचानें और मानें लोग।

यह सहज दुर्बलता
होती हर एक में;
या कहूँ कि यह ही है
शक्ति भी जीने की
जीवन के सागर को
मथ-मथ कर
अमृत और विष कोनिकाल कर
उसमें से
अमृत को बाँट-बाँट औरों को
स्वयं विष हँस-हँसकर पीने की।

इसीलिए
जन्म के साथ-साथ
मानता आया हूँ
जन्म भी मृत्यु का।

2.1.77