मौन-मिटा
वाक्-चपल
लोग हुए,
भीतर से बोले
जीवन की बानी।
सम्पुट पंखुरियों का
महादेश
अन्ततः खुला
गमक उठी
आत्म-गंध
रंग-रूप छलका।
रचनाकाल: ०२-०३-१९७७
मौन-मिटा
वाक्-चपल
लोग हुए,
भीतर से बोले
जीवन की बानी।
सम्पुट पंखुरियों का
महादेश
अन्ततः खुला
गमक उठी
आत्म-गंध
रंग-रूप छलका।
रचनाकाल: ०२-०३-१९७७