लोग क्यो व्यर्थ हमसे जलते हैं?
हम हवा के खिलाफ चलते हैं।
आप गुलशन के आस पास रहें,
हम बियाबान में टहलते हैं।
ज़िन्दगी के विरोध में हर रोज़,
मौत के काफिले निकलते हैं।
ख़ुद ख़ुदी की निगाह में गिरकर,
शोहदे शान से उछलते हैं।
लूट का माफ़िया चलाते जो,
झूट का क़ाफ़िया बदलते हैं।
कुन्द माहौल के मुख़ातिब भी,
हौंसले सिरफिरों में पलते हैं।