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उलूखन-बंधन-1 ( राग केदार) / तुलसीदास
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07:45, 22 मार्च 2011
कोखि के जाए सों रोषु केतो बड़ो कियो है।
ढीली करि दाँवरी, बावरी! सँावरेहि देखि,
सकुचि सहमि सिसु भारी भय भियो है।1।
Dr. ashok shukla
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