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<Poem>
'''रचनाकाल : 2005'''
साँसों में दर्द भरा है
आज हर मन्ज़र मंज़र हरा है
वह पहली नज़र सेमेरेइस शीश:-ए-दिल में ठहरा है
हर शय -सू, हर शै में वह हैऔर उसका उसी का चेहरा है
मेरा दर्द सिमटता नहींहाल हर पल हाले-दिल बहुत बुरा है
अंधेरों की आदत नहीं
सो जुगनुओं का पहरा है
'नज़र' वह पसंद है मुझेउसका दिल भी गहरा है  '''रचनाकाल : 2005</poem>