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 दिन -दिन दूनो देखि दारिदु , दुकालु , दुखु दुरितु दुराजु सुख-सुकृत सकोच है।  मागें पैंत पावत पचारि पातकी प्रचंड, कालकी करालता, भलेको होत पोच है।  आपने ं तौ एकु अवलंबु अंब डिंभ ज्यों, समर्थ सीतानाथ सब संकट बिमोच है।  तुलसी की साहसी सराहिए कृपाल राम! नामकें भरोसें परिनामको निसोच है।। 
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मोह -मद मात्यो, रात्यो कुमति-कुनारिसों,
बिसारि बेद-लोक -लाज ,आँकरो अचेतु है।
 
भावे सो करत, मुँह आवै सो कहत ,कछु,
काहूकी सहत नाहिं , सरकस हेतु है।
 
तुलसी अधिक अधमाई हू अजामिलतें,
ताहूमें सहाय कलि कपटनिकेतु है।
जैबेको अनेक टेक , एक टेक ह्वौबेकी,
जो, पेट-प्रियपूत हित रामनामु लेतु है।।
</poem>
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