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थे सुनिश्चित ये अप्रिय अध्याय काले
आस्तीनों में विषैले सर्प पाले
छोेड़कर छोड़कर हमने खुले सारे ख़ज़ाने
रिक्त कक्षों पर जड़े हैं खूब ताले
हो गयीं कैसी परिस्थितियाँ विनिर्मित
व्यस्त हैं सब रावणों के अनुकरण में
बुद्धि के उत्कर्ष की गाथा निराली
हो गयीं विदू्रप विद्रूप अनुकृतियाँ हृदय की
सिकुड़ने मुखमंडलों.................................