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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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कब चलता है काम समय से कट के
सीखो नई सदी के लटके-झटके
अब किसमें दम है जो फोड़े पापों के ये मटके
सीखो नई सदी के .................
</poem>
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