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|रचनाकार=मनु भारद्वाज
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<Poem>
उसकी शोखी ने सितम ढाए बहुत
हम तो बस कहते रहे 'हाये' बहुत

वो हमें भूले तो भूले ही रहे
याद हम आये तो याद आये बहुत

आँखों-आँखों में न जाने क्या हुआ
देखकर वो हमको शर्माये बहुत

ख़ुद उलझकर रह गए जान-ए-ग़ज़ल
तेरे गेसू हमने सुलझाये बहुत

जानता था मैं न होगा दर्द कम
ज़ख्म अपने फिर भी सहलाये बहुत

वो न आये अंजुमन में ऐ 'मनु'
हमने पैगामात पहुंचाए बहुत</poem>
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