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|रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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मज़ा आ रहा है ग़ज़ल में तेरी
लगे जैसे मुख में हो मीठी डली
पुकारा जो तुमने तो मैं आ गया
मेरी बात "आज़र" न तुमने सुनी
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