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मज़ा आ रहा है ग़ज़ल में तेरी / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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मज़ा आ रहा है ग़ज़ल में तेरी
लगे जैसे मुख में हो मीठी डली
हवा आंधी बन-बन के कैसे चली
उड़ा ले गई मिट्टी धूलों भरी
लटों को जो तूने यूं झटका दिया
पता बेखबर किस पे बिजली गिरी
निगाहों में कैसी ये मदहोशियाँ
हमें मार डालें न बे मौत ही
पुकारा जो तुमने तो मैं आ गया
मेरी बात "आज़र" न तुमने सुनी