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{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अपलक मुझे निहारा करते दो नैना
यूँ ही दिवस गुज़ारा करते दो नैना
पल भर कभी निहारे मुझको कोई और
ये न कभी गवारा करते दो नैना
मेरा हृदय सशंकित, पीड़ित हो उठता
जब भी कभी किनारा करते दो नैना
कल थे कहाँ? कहो कैसे हो? ठहरो भी
क्या क्या नहीं इशारा करते दो नैना
देते नित्य विचारों का उपहार मुझे
मेरी ग़ज़ल संवारा करते दो नैना
<poem>
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|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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अपलक मुझे निहारा करते दो नैना
यूँ ही दिवस गुज़ारा करते दो नैना
पल भर कभी निहारे मुझको कोई और
ये न कभी गवारा करते दो नैना
मेरा हृदय सशंकित, पीड़ित हो उठता
जब भी कभी किनारा करते दो नैना
कल थे कहाँ? कहो कैसे हो? ठहरो भी
क्या क्या नहीं इशारा करते दो नैना
देते नित्य विचारों का उपहार मुझे
मेरी ग़ज़ल संवारा करते दो नैना
<poem>