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कनाट प्लेस : एक शाम / रमेश रंजक
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07:22, 24 दिसम्बर 2011
मछली-सी झूम-झूलतीं
कुहरे में झालरें
महँगी अस्मत वाले
कुआ
क्या
करें ?
(जिए या मरें ?)
</poem>
अनिल जनविजय
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