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शिकस्त / साहिर लुधियानवी

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{{KKRachna
|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
|संग्रह=परछाईयाँ (संग्रह) / साहिर लुधियानवी
}}
 
<poem>
[[Category:नज़्म]]
अपने सीने से लगाये हुये उम्मीद की लाश<br>
मुद्दतों ज़ीस्त <sup>1</sup> को नाशाद <sup>2</sup> किया है मैनें<br>
तूने तो एक ही सदमे से किया था दो चार<br>
दिल को हर तरह से बर्बाद किया है मैनें<br>
जब भी राहों में नज़र आये हरीरी मलबूस<sup>3</sup><br>
सर्द आहों से तुझे याद किया है मैनें<br><br>
और अब जब कि मेरी रूह की पहनाई में<br>
एक सुनसान सी मग़्मूम घटा छाई है<br>
तू दमकते हुए आरिज़ <sup>4</sup> की शुआयेँ <sup>5</sup> लेकर<br>गुलशुदा <sup>6</sup> शम्मएँ <sup>7</sup> जलाने को चली आई है<br><br>
मेरी महबूब ये हन्गामा-ए-तजदीद<sup>8</sup>-ए-वफ़ा<br>मेरी अफ़सुर्दा <sup>9</sup> जवानी के लिये रास नहीं<br>
मैं ने जो फूल चुने थे तेरे क़दमों के लिये<br>
उन का धुंधला-सा तसव्वुर <sup>10</sup> भी मेरे पास नहीं<br><br>
एक यख़बस्ता <sup>11</sup> उदासी है दिल-ओ-जाँ पे मुहीत<sup>12</sup><br>
अब मेरी रूह में बाक़ी है न उम्मीद न जोश<br>
रह गया दब के गिराँबार <sup>13</sup> सलासिल <sup>14</sup> के तले<br>मेरी दरमान्दा <sup>15</sup> जवानी की उमन्गों का ख़रोश<br><br> 
</poem>
1 जीस्त- ज़िंदगी । 2 नाशाद- ग़मग़ीन, उत्साहहीन । 3 हरीरी मलबूस - रेशमा कपड़े का टुकड़ा । 4 आरिज़ - गाल और होंठों के अंग । 5 शुआ - किरण । 6 गुलशुदा - बुझ चुकी, मृतप्राय । 7 शम्मा - आग । 8 तज़दीद - पुनरोद्भव, फिर से जाग उठना । 9 अफ़सुर्दा - मुरझाई हुई, कुम्हलाई हुई । 10 तसव्वुर -ख़याल, विचार, याद । 11 यख़बस्ता - जमी हुई । 12 मुहीत -फैला हुआ । 13 गिराँबार - तनी हुई, कसी हुई । 14 सलासिल - ज़ंजीर । 15 दरमान्दा - असहाय, बेसहारा
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