भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शिकस्त / साहिर लुधियानवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज



अपने सीने से लगाये हुये उम्मीद की लाश

मुद्दतों ज़ीस्त1 को नाशाद2 किया है मैनें

तूने तो एक ही सदमे से किया था दो चार

दिल को हर तरह से बर्बाद किया है मैनें

जब भी राहों में नज़र आये हरीरी मलबूस3

सर्द आहों से तुझे याद किया है मैनें



और अब जब कि मेरी रूह की पहनाई में

एक सुनसान सी मग़्मूम घटा छाई है

तू दमकते हुए आरिज़4 की शुआयेँ5 लेकर

गुलशुदा6 शम्मएँ7 जलाने को चली आई है



मेरी महबूब ये हन्गामा-ए-तजदीद8-ए-वफ़ा

मेरी अफ़सुर्दा9 जवानी के लिये रास नहीं

मैं ने जो फूल चुने थे तेरे क़दमों के लिये

उन का धुंधला-सा तसव्वुर10 भी मेरे पास नहीं



एक यख़बस्ता11 उदासी है दिल-ओ-जाँ पे मुहीत12

अब मेरी रूह में बाक़ी है न उम्मीद न जोश

रह गया दब के गिराँबार13 सलासिल14 के तले

मेरी दरमान्दा15 जवानी की उमन्गों का ख़रोश




1 जीस्त- ज़िंदगी । 2 नाशाद- ग़मग़ीन, उत्साहहीन । 3 हरीरी मलबूस - रेशमा कपड़े का टुकड़ा । 4 आरिज़ - गाल और होंठों के अंग । 5 शुआ - किरण । 6 गुलशुदा - बुझ चुकी, मृतप्राय । 7 शम्मा - आग । 8 तज़दीद - पुनरोद्भव, फिर से जाग उठना । 9 अफ़सुर्दा - मुरझाई हुई, कुम्हलाई हुई । 10 तसव्वुर -ख़याल, विचार, याद । 11 यख़बस्ता - जमी हुई । 12 मुहीत -फैला हुआ । 13 गिराँबार - तनी हुई, कसी हुई । 14 सलासिल - ज़ंजीर । 15 दरमान्दा - असहाय, बेसहारा