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16:10, 18 मई 2012
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]]के ‘हिमांशु’के अनुसार- डॉ [[सुधा गुप्ता ]] का जापानी छन्दों में मन खूब रमा है ,चाहे वह[[ हाइकु]] रहा हो , चाहे सेन्रर्यू, चाहे[[ ताँका]] और अब[[ चोका ]]। जापानी काव्य के महारथियों के पुण्य स्मरण का अवसर हो तो चोका से अधिक उपयुक्त क्या होगा । इसमें वर्णन की पूरी सुविधा है । डॉ सुधा गुप्ता जी कोरे वर्णन तक ही इसकी सीमा तय नहीं करती वरन् उसमें काव्य वैभव का समावेश करके अपनी क्षमता का अहसास करा देती हैं । जापान सूर्योदय का देश है। किसी भी देश के साहित्यकार उसकी सर्वोत्तम निधि होते हैं। किसी देश के राजा को विदेश में स्वीकृति नहीं मिल पाती वहीं एक अच्छा साहित्यकार देश-काल की सीमाओं को लाँघकर सबका हो जाता है ।‘ओक भर किरनें’ में कवयित्री ने दो भाग किए है :
'''1-समर्पण 2-धरा-गगन'''
प्रथम अध्याय ‘समर्पण ‘में छह प्रकरण हैं :