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ओक भर किरनें (चोका-संग्रह) / सुधा गुप्ता

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 रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’के अनुसार- डॉ सुधा गुप्ता का जापानी छन्दों में मन खूब रमा है ,चाहे वह हाइकु रहा हो , चाहे सेन्रर्यू, चाहे ताँका और अब चोका । जापानी काव्य के महारथियों के पुण्य स्मरण का अवसर हो तो चोका से अधिक उपयुक्त क्या होगा । इसमें वर्णन की पूरी सुविधा है । डॉ सुधा गुप्ता जी कोरे वर्णन तक ही इसकी सीमा तय नहीं करती वरन् उसमें काव्य वैभव का समावेश करके अपनी क्षमता का अहसास करा देती हैं । जापान सूर्योदय का देश है। किसी भी देश के साहित्यकार उसकी सर्वोत्तम निधि होते हैं। किसी देश के राजा को विदेश में स्वीकृति नहीं मिल पाती वहीं एक अच्छा साहित्यकार देश-काल की सीमाओं को लाँघकर सबका हो जाता है ।‘ओक भर किरनें’ में कवयित्री ने दो भाग किए है  :
1-समर्पण 2-धरा-गगन
प्रथम अध्याय ‘समर्पण ‘में छह प्रकरण हैं  :
1-प्रवेश , 2-मात्सुओ बाशो , 3-सोनोजो , 4-योसा बुसोन , 5-कोबा याशी इस्सा , 6 -मासाओका शिकि अत्सुओ ओहकी
दूसरे अध्याय में 11 प्रकरण हैं ,जिनमें कवयित्री की कल्पना को धरा का विस्तार मिला है तो गगन की असीम ऊँचाई भी साथ ही मिली है ।
कवयित्री वर्णन , विवरण के साथ-साथ बाह्य और अन्त: प्रकृति का चित्रण चोका के माध्यम से किसी कुशल कैमरामैन के सौन्दर्यबोध की कलात्मक प्रस्तुति बनकर हमारी आँखों के आगे आ जाता है । इनका अनुभूत सत्य इन्द्रधनुषी रंग में मन मोह लेता है । कविता का हर शब्द पाठक के मर्म को छू लेता है ।